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Nov 10, 2020

मराठी कंडक्टर और किसान को न्याय कब, सरकार के पास सैलरी नहीं लेकिन गाड़ी के लिए पैसा, जनता का उद्धव-पवार-सोनिया सरकार से सवाल, आर्टिकल 356 संभव नहीं !

Maharashtra government not arresting Shivsena MLA


When Manoj Gets Nyay From congress shivsena sharad pawar, Maharastra

ड्राइवर के सुसाइड नोट में ठाकरे को जिम्मेदार

दिनांक 09 Nov 2020 को महाराष्ट्र एसटी बस कंडक्टर के एक कर्मचारी ‘मनोज चौधरी’ ने उद्धव ठाकरे सरकार द्वारा सैलरी नहीं मिलने पर अपने आपको टांगकर आत्महत्या कर ली जिसने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा ! इस मराठी मानुस को सैलरी ना मिलने पर लिखे सुसाइड नोट में उद्दव सरकार और एसटी निगम को कटघरे में खड़ा किया है ! मृतक मराठी मानुस मनोज महाराष्ट्र के जलगांव जिले के कुसुम्बा गाँव का रहने वाला था ! मृतक ने पत्र में लिखा, इन सब मे उनके (mrat परिवार का कोई लेना-देना नहीं है और संगठनों से अपील है कि उनके परिवार को पीएफ और एलआईसी कि रकम प्राप्त करवाने में मदद करे

वही चार महीने से सैलरी ना मिलने कि वजह से एक और एसटी ड्राइवर ‘पांडरंग गड्दे’ ने भी आत्महत्या कर ली है ! इस समस्या को लेकर वहा के पत्रकारों ने एक हफ्ते पहले भी राज्य सरकार (शिवसेना-कांग्रेस-पवार) को आगाह किया था लेकिन उद्धव सरकार व्यस्त थी ‘ऑपरेशन अर्नब’ में जो राज्य सरकार के हिसाब से बड़ी समस्या थी ! [1]




Farmer Suicide And He Named Shivsena Leader 'Omraje Nimbalkar' in his suicide note.

सुसाइड नोट में शिवसेना नेता, नहीं हुई गिरफ़्तारी

दिनांक 08 Nov 2020 को महाराष्ट्र के ओसमाबाद के तद्वाले गाँव में रहने वाले एक किसान ‘दिलीप धवले’ के परिवार ने न्याय के लिए आवाज़ उठाई है जिसमे सन 2019, एक साल पहले ‘दिलीप धवले’ ने ज़मीन और कर्ज धांधली के चलते आत्महत्या कर ली थी जिसमे उसने दो सुसाइड नोट छोड़े थे, एक सुसाइड नोट में गाँव के लोगो को संबोधन किया था और दूसरे में महाराष्ट्र पुलिस के इन्स्पेक्टर के लिए जिसमे ज़मीन गिरवी रखने मामले में शिवसेना सांसद ओमप्रकाश नंबलकर और वसंतदादा सीओ-ऑपरेटिंग बैंक के अध्यक्ष ‘विजय दंद्नैक’ पर धांधली को लेकर आरोप लगाया था !


मृतक किसान के परिवार ने एक साल बाद फिर से मांग कि जिस तेजी शिवसेना-पवार-सोनिया सरकार ने अर्नब गोस्वामी को जिस रफ़्तार से करवाई की है उसी तेजी के साथ इस किसान परिवार कि मांग पर शिवसेना सांसद पर करवाई करे ! मृतक की पत्नी वंदना ने बताया, लोकसभा चुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे ने उन्हें न्याय दिलाने का वादा किया था साथ में घटना के पाँच महीने बाद मामला दर्ज किया था और अपराध दर्ज किये एक साल बीतने के बाद पुलिस ने अब तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया है ! [2]  



पैसा कर्मचारियों के नहीं, कार खरीदने के लिए है

दिनांक 04 Jul 2020 को महाराष्ट्र में कोरोना महामारी के दौरान जब एक तरफ अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ बता रही थी वही दूसरी तरफ उद्धव सरकार ने मंत्रियों के लिए महँगी कार खरीदने की मंजूरी दे दी थी ! वही राज्य के सरकारी कर्मचारी को चार महीने से सैलरी ना मिल पाने कि वजह से आत्महत्या कर रहे है लेकिन राज्य सरकार अपने मंत्रियों के लिए महंगी गाडियां खरीदने के लिए फंड को मंजूरी दी थी ! [3]




Republic Tv And Times Now Having Highest Viewerships accepted by KApil Sibbal's Son In the court.

जनता खड़े कर रही उद्धव-पवार-सोनिया पर सवाल

एक तरफ उद्धव सरकार ने दो साल पुराने और महाराष्ट्र पुलिस प्रशासन द्वारा बंद किये गए केस को बिना कोर्ट की इजाज़त के केस को दोबारा खोलना सवालिया निशान खड़े कर रहा है ! उद्धव सरकार इसपर सफाई दे रहे कि वो कानून के हिसाब से चल रहे ! इसको लेकर भी कानून के जानकार ने भी सवाल खड़े कर दिए है वहीँ दूसरी तरफ जनता उद्धव सरकार और महाराष्ट्र पुलिस से किसान और कंडक्टर को लेकर सवाल पूछना शुरू कर दिए है जबकि कांग्रेसी वकील और नेता कपिल सिब्बल ने पहले कोर्ट में मना कि रिपब्लिक टीवी के खिलाफ एफआईआर में नाम नहीं था लेकिन उनके लड़के ‘अखिल सिब्बलने भी कोर्ट में बयान देते हुए माना कि ‘रिपब्लिक टीवी’ और ‘टाइम्स नाओ’ कि टीआरपी सबसे अधिक जो कि 70% है ! इसका मतलब इंग्लिश न्यूज़ चैनल देखने वालो में 70% लोग सिर्फ इन दोनों चैनल को देखते है ! [6]  

एक वकील ‘अश्वनी दुबे’ ने लिखा, अर्नब गोस्वामी को वकील से मिलने कि अनुमति नहीं देना संविधान के आर्टिकल 22(1) का उल्लंघन है, सीआरपीसी की धारा 41D जो कहता है पूछताछ के दौरान वकील से सलाह लेने का अधिकार और धारा 55(A) जो कहता है क्रूर, अमानवीय व्यवहार से सुरक्षा, मुंबई पुलिस का अधिनियम कानून के खिलाफ है और राज्य में कानून और व्यवस्था कि विफलता है ! [4]


एक ऑस्ट्रेलिया में मुस्लिम विद्वान ‘इमाम तहीदी’ ने अर्नब की गिरफ़्तारी का विरोध किया और लिखा कि “भारतीय लोकतंत्र तब तक मर चुका है जब तक कि अर्नब गोस्वामी को न्याय नहीं मिलता “! [5]




Indian Government Imposes President Rules using Article 356

कुछ समर्थकों की मांग 356, यह संभव नहीं

जैसा कि रिपब्लिक भारत के समर्थन में उतरे लोगो का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार को राज्य के मामले में हस्तक्षेप कर वहा राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए ! असल में यह इतना आसान  नहीं जीतना आसान जनता समझ रही है ! कुछ दिन पहले भी गृह मंत्री ने एक मीडिया से बातचीत में कहा था कि कुछ मामलो में कुछ ज्यादा ही हवा दी जाती जिसको नहीं दिया जाना चाहिए ! उनका मतलब ऐसी चीजों से ही था जो क़ानूनी दावपेच में राष्ट्रपति शासन की बात करते है ! चलिए एक केस से आपको पता चल जायेगा आर्टिकल 356 आसान नहीं !


दिनांक 13 Aug 1988 को जनता पार्टी के नेता ‘एस आर बोम्मई’ ने मुख्यमंत्री की सपत ली थी विधायको के उठा पठक के चक्कर में मात्र कुछ महीनों में ही गवर्नर ने राष्ट्रपति जी से आर्टिकल 356 के तहत सरकार बर्खास्त करने का पत्र लिख दिया ! जनता पार्टी ने गवर्नर से मिलकर बहुमत सिद्ध करने के लिए भी कहा लेकिन गवर्नर ने राष्ट्रपति जी को एक रिपोर्ट भेज दी जिसमे राज्य सरकार ने बहुमत खो देने कि बात कही ! राष्ट्रपति जी ने तुरंत उसी दिन दिनांक 20-21 Apr 1989 को बर्खास्त कर दी थी !


जिसके खिलाफ 26 Apr 1989 को जनता पार्टी ने हाई कोर्ट में एक याचिका डाल दी जिसको तीन जजों ने ख़ारिज कर दिया लेकिन जनता पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया ! केस चलता रहा पाँच साल जिस बीच कांग्रेस की राजीव गाँधी सरकार ने मेघालय, नागालैंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि की भी सरकारें किसी ना किसी बहाने आर्टिकल 356 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाये गए साथ में कांग्रेस के अपना मुख्यमंत्री कर्नाटक में बनवा कर वहां सत्ता पर भी कब्ज़ा किया ! दिनांक 11 Mar 1994 को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजो की बेंच ने देर से ही लेकिन बड़ा निर्णय दिया था जिसमे कहा कि राष्ट्रपति मनमाने ढंग से आर्टिकल 356 का इस्तेमाल नहीं कर सकते, यदि किसी राज्य सरकार ने बहुमत खो दिया हो तो विधानसभा को निलंबित किया जा सकता है लेकिन राष्ट्रपति के आदेश को दो माह के भीतर दोनों सदनों में पारित करना आवश्यक होगा अन्यथा विधानसभा का निलंबन रद्द मना जायेगा और राज्य सरकार पुनः कामकाज जारी रख सकती है ! यदि बहुमत के लिए शक्ति-परीक्षण करना हो तो वह केवल विधानसभा में ही हो सकता है, राजभवन और राष्ट्रपति भवन में नहीं ! 


सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, राष्ट्रपति तभी किसी राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकते है जब दल बहुमत सिद्ध ना कर पाए, या कोई राज्य सरकार अगर केंद्र के किसी संवैधानिक निर्देश को ना मान रही हो अथवा भारत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह को उकसा रही हो ! कांग्रेस नेहरु जी ने सस्ता में रहते करीब आठ बार और इंदिरा जी ने 50 बार गलत तरीके से सरकारें बर्खास्त की थी ! सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद एक बार अटल बिहार सरकार ने भी बिहार की राबड़ी सरकार को बर्खास्त कि कोशिश कि थी लेकिन एक महीने में ही राज्यसभा में बहुमत ना होने की वजह से सरकार बहाल हो गई ! इस भ्रम ना रहे कि केंद्र के पास आर्टिकल 356 की ताकत है और सरकार पर सवाल खड़े से कुछ ना होगा ! मोदी सरकार एक गलत कदम उठाकर विरोधियों को मौका नहीं देगी रही बात अर्नब की, अर्नब जेल से क़ानूनी प्रक्रिया के साथ बाहर आयेंगे ! शिवसेना सरकार द्वारा लिए गए गलत निर्णय उनको भारी नुकसान पहुचायेंगे !


संदर्भ

[1] बस कंडक्टर कर रहे आत्महत्या 

[2] किसान के सुसाइड नोट में शिवसेना सांसद का नाम 

[3] कर्मचारियों के पैसा नहीं महेंगी गाडियों के लिए 

[4] वकील कि राय 

[5] विदेशी मुस्लिम इमाम का समर्थन  

[6] बेटा ने माना इंग्लिश टीआरपी में दोनों का कब्ज़ा 


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